Wednesday, December 24, 2008

An Excellent Composition by Asrar-ul-Haq Majaz

कुछ तुझ को है ख़बर हम क्या क्या ऐ शोरिश-ए-दौरां भूल गए;
वह ज़ुल्फ़-ए-परीशां भूल गए, वह दीद-ए-गिरयां भूल गए;

ऐ शौक़-ए-नज़ारा क्या कहिए नज़रों में कोई सूरत ही नहीं;
ऐ ज़ौक़-ए-तसव्वुर क्या किजिए हम सूरत-ए-जानां भूल गए;

अब गुल से नज़र मिलती ही नहीं अब दिल की कली खिलती ही नहीं;
ऐ फ़स्ले बहारां रुख़्सत हो, हम लुत्फ़-ए-बहारां भूल गए;

सब का तो मदावा कर डाला अपना ही मदावा कर न सके;
सब के तो गिरेबां सी डाले, अपना ही गिरेबां भूल गए;

यह अपनी वफ़ा का आलम है, अब उनकी जफ़ा को क्या कहिये;
एक नश्तर-ए-ज़हर-आगीं रख कर नज़्दीक रग-ए-जां भूल गए...

2 comments:

Unknown said...

Why don't you try to use urdu fonts?

Arman said...

Will definitely try that in future. Thanks for your suggestion :-)