This is a rejoinder to my previous post titled "शिकस्त-ऐ-वफ़ा"
__________________________________________________________________
जाने क्यूँ कानों में गूंजती हर सिम्त यह शहनाई है आज;
उल्फत का वोह "दिलावेज़" चेहरा, हसीं शाम फिर ले आई है आज;
महफिल-ऐ-गुलज़ार है, गुलों और गुंचों की शमा भी रौशन है;
हर सिम्त से खुशियों की चादर लपेटे बहार आई है आज;
जशन-ऐ-खुदाई में यह कहाँ मुमकिन, मुकम्मल हो हर बात;
पर इसके बावजूद, हर तरफ़ महफिल-ऐ-खुशहाली छाई है आज;
अब सुबह का इंतज़ार किसे, फलक पे छाया वोह चांदनी का झूमर;
क्या खूब वोह जाम-ऐ-विसाल है जो तू ने पिलाई है आज;
क्या मैं सिला दूँ, कौन सा वाज़ीफा तुझे नज़र-ऐ-इनायत करूँ;
तू ने जो इनायत की है, मेरी हस्ती की इक नई शनासाई है आज;
अब बहारों के आगोश में पल रहे हैं हसरतों के नये ख्वाब;
जिंदगी जैसे "अरमान" बहार-ऐ-वफ़ा में समा कर आई है आज........
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
6 comments:
Sharju, that was fabulous, lovely, Truly beautiful..
Didnt know you could write so well in urdu too :)-
Cheers,
Riz
Rizal bhai, thanks a lot :-)
Well yes, I have always been addicted to Urdu poetry. Have normally been writing on distressing topics; and this is the first time I have tried romance :P :P :P :P :P :-)
Nothing much, just the after affects of getting married....
Hehehehehhehehehehehehe :D
Thanks once again!!
MASHA ALLAH.KHOOB SUKHANVARI HAI JANAAB!
zara wordverification hata dijiye.zahmat hai comment karne walon k liye.
Sharjeel, I read it today. It's beautifully optimistic :-)
Thanks dear!! Shaadi ke side effects - hehehehehehehe :D
Hahaha, aap khushnaseeb hain jo side effects achchhe nikle :-D Kuchh logon ko ultey effects ho jaatey hain shaadi ke baad!
Post a Comment